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कहा जा सकता है कि फारेन इंस्‍टीटयूशनल इन्‍वेस्‍टर्स (एफआईआई) ही बाजार को बढ़ाते है और घटाते है, इनके द्वारा पैसा इन्‍वेस्‍ट होने पर बाजार बढ़ता है, और पैसा निकालने पर बाजार में नीचे जाता है”


शेयर बाजार की चाल पर विदेशी संस्‍थागत निवेशकों (FII) और फंड हाउस (FUND HOUSE) का बड़ा असर पड़ता है.एफ.आई.आई. जब बिकवाली करते हैं, तो SENSEX नीचे का रूख करता है और इनकी खरीददारी करने पर इसमें अच्‍छी बढ़ोतरी में देखी जाती है. शेयर बाजार का नियामक सेबी रोजाना के आधार पर इक्विटी और डेट बाजार में एफ.आई.आई. के निवेश की जानकारी उपलब्‍ध कराता है. बाजार के खिलाड़ी इस जानकारी का इस्‍तेमाल एफ.आई.आई. के निवेश की दिशा आंकने के लिए करते हैं. इक्विटी बाजार पर एफ.आई.आई. का प्रभाव इतना मजबूत होता है कि घरेलू फंड हाउस एफ.आई.आई. की दमदार चाल के आगे नहीं टिक पाते. सूचकांक (SENSEX) की चाल एफ.आई.आई. की महत्‍वपूर्ण भूमिका को देखते हुए निवेशकों को भी घरेलू बाजार में इनके निवेश पर नजर रखना चाहिये.

 कोन होते हैं एफ.आई.आई.? Who are the F.I.I.?

 ये बड़़े वित्‍तीय संस्‍थान या कंपनियां है, जो अपने मूल देश से अलग अन्‍य देशों के वित्‍तीय बाजारों में निवेश करते है. एफ.आई.आई. के निवेश की चाल काफी अनिश्चित होती है. इसी वजह से बाजार में इस निवेश को “हॉट मनी” कहा जाता है.

 एफ.आई.आई. की खरीदारी-F.I.I. purchase of

 क्‍या होता है जब एफ.आई.आई.का घरेलू बाजार में निवेश बढ़ता जात है? ऐसा होने पर रियल इफेक्टिव एक्‍सचेंज रेट (आर.ई.ई.आर.) में इजाफे की उम्‍मीद की जा सकती है. इस दर का इस्‍तेमाल किसी देश की मुद्राओं के संबंध में किया जाता है.इसमें मुद्रास्‍फीति के प्रभावों को भी एडजस्‍ट किया जाता है. अगर आसान शब्‍दों में कहा जाए तो एफ.आई.आई. का निवेश बढ़ने से बाजार में तेजी का रूप देखा जाता है. खासकर उन शेयरों में बढ़त आती है, जिनमें एफ.आई.आई. निवेश करते है. इसके अलावा एफ.आई.आई.का निवेश बढ़ने से रूपए में मजबूती आती है. इससे घरेलू निर्यात भी प्रभावित होता है, क्‍योंकि उसके उत्‍पाद विदेशी बाजारों में महंगे हो जाते हैं.घरेलू बाजारों में निवेश बढ़ने से तरलता भी अधिक हो जाती है और इससे मुद्रास्‍फीति बढ़ने की आशंका रहती है. इससे जुड़ी गतिविधियों से आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है. 

 एफ.आई.आई. की बिकवाली-F.I.I. selling of

 जरूरत पड़ने और हालात खराब होने पर एफ.आई.आई. एकदम से बिकवाली करना भी शुरू कर देते है. इसका उदाहारण मंदी के दौर में देखा गया था. जब एफ.आई.आई. ने भारी बिकवाली की थी और घरेलू बाजार धूल चाटने लगे थे, उस समय छोटे निवेशकों भी काफी नुकसान हुआ था और उनका इक्विटी पोर्टफोलियो घटकर आधा रह गया था. एफ.आई.आई. के निवेश और बिकवाली के बाजार पर चढ़े असर को देखते हुए निवेशकों को भी एफ.आई.आई. की चाल और वैश्विक घटनाक्रम पर नजर रखनी चाहिये. इससे निवेश के फैसले लेने में उन्‍हें आसानी होगी.

 

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