प्रत्येक वर्ष वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही में परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियाँ फिक्स्ड मैच्यूरिटी प्लान (F.M.P.) की एक सीरीज लॉञ्च करती हैं। ये नियतकालिक इन्कम योजनाएँ (INCOME SCHEME) हैं, जिनकी परिपक्वता (MATURITY) की एक निर्धारित तिथि होती है, जिसे ये एक निश्चित अवधि (FIX TERM) के लिए ही तय करते हैं। यह अवधि 15 दिनों से लेकर 2 वर्षों तक के लिए हो सकती है या इससे ज्यादा भी हो सकती है।आमतौर पर सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (C.D.), कॉरपोरेट बॉण्ड (CORPORATE BOND), मुद्रा बाजार (MONEY MARKET) के उपकरण में एफ.एम.पी. निवेश करती है। अगर एक एफ.एम.पी. 13 महीनों की स्कीम है तो यह 13 महीने के बॉण्ड में निवेश करेगी। इसी वजह से एक एफ.एम.पी. में कोई ब्याज दर जोखिम नहीं होता। इसका मतलब यह है कि अगर कॉरपोरेट बॉण्ड पर ब्याज दरों में उछाल आती है तो आपके निवेश की वैल्यू कम नहीं होगी।
F.M.P. सुरक्षित होने के साथ रिस्की भी है- F.M.P. Being safe is also risky
यह समझना जरूरी है कि एफ.एम.पी. सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट, एफ.डी.) से अलग होता है। एफ.डी. (F.D.) बेहद सुरक्षित होता है। लेकिन अगर बैंक दिवालिया हो गया है, तब आपका एफ.डी. जोखिम में पड़ सकता है। हालाँकि बेहतर पूँजी आधारवाले बैंकों के दिवालिया होने का खतरा बेहद कम होता है। भारत में दिवालिया बैंकों का अधिग्रहण एक बड़ा बैंक कर लेता है। दूसरी ओर एफ.एम.पी. में साख से जुड़ा जोखिम ज्यादा होता है, क्योंकि परिपक्वता का भुगतान योजना में अंतर्निहित निवेश पर निर्भर करता है। इसी वजह से यह जरूरी है कि निवेश करने से पहले किसी योजना पर गौर किया जाए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कॉरपोरेट बॉण्ड, जो योजना का हिस्सा है, उसकी रेटिंग ए.ए.ए. या ए.ए. है। वैसे ऐसी एफ.एम.पी. को नजरअंदाज करें, जो ज्यादा कमाई देने के चक्कर में पोर्टफोलियो की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देती। वर्ष 2008 की मंदी के बाद भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंडों को निवेश और पोर्टफोलियो पर कमाई का खुलासा नहीं करने को कहा। अब फंड कंपनियाँ भी पोर्टफोलियो और बॉण्ड कमाई को लेकर काफी चौकस हो रही हैं। गौर करनेवाली बात यह है कि आर्थिक संकट के दौरान कोई एफ.एम.पी. डिफॉल्टर साबित नहीं हुआ। सभी ने वादे के मुताबिक ही ब्याज दर का भुगतान किया।
कर का फायदा-tax benefit
वर्ष 2008 में एफ.एम.पी. की कर पूर्व कमाई 10-11 फीसदी होती थी, वहीं इस वक्त यह कमाई हर साल 7-7.5 फीसदी तक है। एफ.एम.पी., जो केवल बैंक की सी.डी. में निवेश करती है, वे सालाना 6.8 फीसदी रिटर्न देती है। जब हम एफ.डी. की तुलना इससे करते हैं तो एफ.एम.पी. में सबसे बड़ा फायदा इसके टैक्स ऑर्बिट्रेज से है, जिसमें लागू टैक्स स्लैब के हिसाब से ही कर लगाया जाता है। अगर आप ज्यादा कर वाली श्रेणी में हैं तो आप एक बॉण्ड पर 30.9 फीसदी कर का भुगतान करते हैं, जो 8 फीसदी देता है। इसका मतलब यह है कि एक बॉण्ड 8 फीसदी कर पूर्व रिटर्न देता है, जो कर के बाद 5.5 फीसदी रिटर्न हो जाएगा। वैसे तो इसका रिटर्न बेहतर लगता है, लेकिन वास्तविक रिटर्न, मुद्रास्फीति और महँगाई के बाद इसमें पूँजी की कमी दिख सकती है। इसी वजह से इनमें निवेश जरूर होना चाहिए; लेकिन अधिकतम वास्तविक रिटर्न या मुद्रास्फीति कर के बाद रिटर्न पर जोर होना चाहिए। इसलिए डेट निवेश का विकल्प चुनें, जो कर-मुक्त होते हैं या कर का फायदा देते हैं। अगर कोई ऊँचे कर के दायरे में हैं तो तरजीही टैक्स की वजह से एफ.डी. के मुकाबले एफ.एप.पी. की रिटर्न में 1.5-2 फीसदी तक की तेजी आती है। म्यूचुअल फंड स्कीम होने की वजह से यह आपको लाभांश या पूँजीगत फायदे के रूप में आय देती है। इसी वजह से ऊँची दर की आय कर की तुलना में लाभांश और पूँजीगत लाभ पर कर बेहद कम है। हालाँकि आपको ग्रोथ ऑप्शन और डिविडेंड ऑप्शन में से भी एक को चुनना होगा। अगर आप एफ.एम.पी. में निवेश कर रहे हैं, जिसकी अवधि 12 महीने से भी कम है तो आप डिविडेंड ऑप्शन पर विचार कर सकते हैं। वहीं ग्रोथ ऑप्शन में कुछ अवधि का पूँजीगत लाभ बहुत ज्यादा है और यह किसी भी टैक्स ऑर्बिट्रेज को खत्म कर देता है। अगर आप 12 महीने से ज्यादा अवधि की किसी योजना को चुन रहे हैं तो आप ग्रोथ ऑप्शन को चुनें। ग्रोथ ऑप्शन में भी इंडेक्सेशन विकल्प का चुनाव करना कर बचत की दृष्टि से बेहतर होता है।